राजस्थान इतिहास के प्रमुख ख्यात साहित्य
- ख्यात का अर्थ होता है ख्याति अर्थात यह किसी राजा महाराजा की प्रशंसा मे लिखा गया ग्रंथ।
- ख्यात में अतिश्योक्ति में पूर्ण प्रशंसा की जाती है।
- राजस्थान के इतिहास मे 16 वीं शताब्दी के बाद के इतिहास में ख्यातों का महत्वपुर्ण स्थान है।
- ख्यात विस्तृत इतिहास होता है जबकि ' वात ' संक्षिप्त इतिहास होता है।
- यह वंशावली व प्रशस्ति लेखन का विस्तृत रुप होता है।
- ख्यात साहित्य गद्य मे लिखा गया है।
- प्रतिभाशाली शासको की ख्यातें भी लिखी गयी , उदाहरण के लिये जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह की ख्यात रची गयी।
- ख्यात साहित्य को अध्ययन की सुविधा के लिये चार भागो मे विभाजित किया जा सकता है -
(अ) इतिहासपरक ख्यात , (ब) वार्तापरक ख्यात , (स) व्यक्तिपरक ख्यात , ( द) स्फुट ख्यात
- उपलब्ध ख्यात साहित्य मे सबसे पुरानी ख्यात मुणहोत नैणसी री ख्यात है।
- राजस्थान का इतिहास लिखने वाले प्रारम्भिक विद्वानों ने अपनी कृतियों मे ख्यात साहित्य का प्रयोग किया है।
- वर्तमान समय मे जो राजस्थान के इतिहास पर जो शोध कार्य किये है उनमें भी ख्यात साहित्य का प्रयोग किया गया है।
- मारवाड़ के राव मालदेव के शेरशाह के साथ संबंधो को उजागर करने का प्रमुख साधन ख्यात साहित्य ही है।
- शेरशाह के साथ अब्बासखॉं सरवानी ने तो ' तारीख - ए - शेरशाही ' मे केवल इतना ही लिखा है कि शेरशाह पड़ाव से पहले बोंरों मे रेत भरकर सुरक्षा की अग्रिम व्यवस्था तैयार करवाता था। शेरशाह का मालदेव के सेनानायक के साथ डीडवाना मे संघर्ष हुआ , शेरशाह नपरबतसर , श्रीनगर , अजमेर होते हुए वर्तमान मांगलियावास के पास मालदेव का जोधपुर जाने का मार्ग अवरुध्द किया , शेरशाह और मालदेव के बीच गिरि सुमेल का युध्द हुआ इसकी जानकारी हमें केवल ख्यात साहित्य के द्वारा ही मिलती है ।
- सुमेल की भौगोलिक स्थिति को आज तक तथाकथित विद्वान और शोधकर्ता निर्धारण नही कर सके।
- डॉ. साधना रस्तोगी मे ' मारवाड़ का शौर्य युग ' में गिरी को घूघरा घाटी और सुमेल को कुचीला बताया है।
- डॉ. मांगीलाल व्यास ने भी शेरशाह के घुघरा घाटी तक पहुंचने का उल्लेख ' जोधपुर राज्य का इतिहास ' मे लिखा है।
- इसी प्रकार मानसिंह और राणा प्रताप के बीच उदयसागर की पाल पर भेंट का वर्णन हमें ' नैणसी की ख्यात ' और ' आमेर की ख्यातों ' में मिलता है।
- डॉ. गोपीनाथ शर्मा का कथन - " ख्यातों में राजवंश की पीढ़ियों , जन्म - मरण की तीथियों , किन्ही विशेष घटनाओं का उल्लेख तथा जिस वंश के लिये ख्यात लिखी गई हो , उसके व्यक्ति विशेषों का जीवन सम्बन्धी विवरण रहता है। "
प्रमुख ख्यातो में लिपिबध्द ऐतिहासिक सूचना का वर्णन इस प्रकार है -
मुहणौत नैणसी री ख्यात -
- यह नैणसी द्वारा मारवाड़ी मे एवं ड़िंगल भाषा मे लिखी गई ख्यात है।
- नैणसी (1610 - 1670 ) जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के दरबारी कवि एवं दीवान थे ।
- मुंशी देवी प्रसाद ने नैणसी क़ो ' राजपुताने का अबुल फजल ' कहा है।
- इस ख्यात मे समस्त राजपुताने के साथ ही जोधपुर के राठौड़ौं का विस्तृत इतिहास लिखा गया है।
- इस ख्यात मे राजपुतो की 36 शाखाओं का वर्णन किया गया है जो बडे महत्व का है।
- नैणसी की दुसरी कृति ' मारवाड़ रा परगना री विगत ' ( गावां री ख्यात ) है जो ख्यात जितनी ही बड़ी है इसे ' सर्वसंग्रह ' भी कहते है। इसमें उस समय के सभी परगनों की आमदनी , ठिकानों की रेख - चाकरी , भुमि की किस्म , फसलें , सिंचाई के साधनों , आबादी आदि का वर्णन किया गया है। इसलिये इसे ' राजस्थान का गजेटियर ' भी कहा जाता है।
- राजस्थान प्राच्यविधा प्रतिष्ठान , जोधपुर ने ख्यात की सभी प्रतियों को संग्रहित करके चार जिल्दों में ख्यात और दो जिल्दों में ' गावां री ख्यात ' को प्रकाशित करवा दिया।
- इस ख्यात की तुलना बाबरनामा से की जाती है।
- नैणसी री ख्यात को मुरारी दान ने प्रसिध्द किया था।
- इस ख्यात में 1000 पृष्ठ है।
- इस ग्रंथ को जनगणना का अग्रज माना जाता है क्योंकी इस ग्रंथ ने सर्वप्रथम जनगणना के आंकडे प्रस्तुत किये थे।
- जसवंत सिंह ने दक्षिणी अभियान में जाते समय 1670 में नैणसी व उअसके भाई सुन्दरदास की हत्या करवा दी थी।
- नैणसी री ख्यात के बारे में कानूनगो का कथन - " इस ग्रंथ का महत्व केवल राजनीतिक ही नहीं , अपितु राजस्थान का सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास जानने हेतु यह ग्रंथ महत्वपुर्ण है। उस समय के उत्सव , त्योहार आदि का सुन्दर वर्णन हुआ है "।
- नैणसी प्रथम ख्यात लेखक था जिसनें राजस्थान के गढ़ व गढ़ियों का वर्णन किया है।
- इसकी ख्यात से ही हमें सर्वप्रथम अंतर्राज्यों संबंधों के बारे मे जानकारी प्राप्त होती है।
- नैणसी री ख्यात का अंतिम भाग सर्वाधिक महत्वपुर्ण है जिसमें विभिन्न गॉंवों व परगनो का वर्णन मिलता है।
- एक लेखक के रुप में नैणासी वास्तव में राजस्थान का एक महत्वपुर्ण ख्यात लेखक था। नैणसी ने अपनी ख्यात में कई लड़ाइयों , वीर पुरुषों एवं उनकी जागीरों का वर्णन किया है।
- इस ख्यात में उदयपुर , हाडौती , ड़ूंगरपुर , बॉंसवाड़ा , जैसलमेर के भाटियों , कच्छवाहों , खेड़ के गुहिलों आदि का वर्णन मिलता है।
बांकीदास री ख्यात , जोधपुर -
- इस ख्यात के लेखक बांकीदास थे जो जोधपुर के महाराजा मानसिंह राठौड़ के दरबारी थे।
- बांकीदास का सन् 1803 में नाथपंथी गुरु देवनाथ के साथ सम्पर्क हुआ वे जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह के गुरु थे , अतएव गुरु की कृपा से ही बांकीदास का महाराजा मानसिंह के साथ सम्पर्क हुआ था।
- बांकीदास की कवित्व शक्ति से प्रसन्न होकर मानसिंह ने उन्हे लाखपसाव पुरस्कार दिया।
- कुछ समय के बाद बांकीदास महाराजा मानसिंह के भाषा गुरु बन गये।
- बांकीदास का सन् 1833 में देहान्त हो गया था।
- बांकीदास की ख्यात में जोधपुर के राठौड़ौं के साथ अन्य वंशो का भी इतिहास दिया गया है।
- यह ख्यात मारवाड़ी एवं ड़िंगल भाषा मे लिखि गयी है।
- इसे ' जोधपुर राज्य की ख्यात भी कहा जाता है।
- इस ख्यात में छोटी - छोटी दो हजार बातें लिखी गई है।
- इस ख्यात में जयपुर व जोधपुर की स्थापना के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
- बांकीदास ने ' आयो अंगरेज मुलक रे ऊपर ' शीर्षक गीत से राजपुत राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ ललकारा।
- प्रामाणितकर्ता की दृष्टि से यह राजस्थान की अन्य ख्यातों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय है।
- डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इसके ऐतिहासिक महत्व को इन शब्दों में स्वीकार किया था -
".... ग्रंथ क्या है , इतिहास का खजाना है। राजपूताना के तमाम राज्यों के इतिहास संबंधि रत्न उसमें भरे पडे है। "
- बांकीदास रचित 26 कृतियॉं बांकीदास ग्रंथावली के तीन भागौं में प्रकाशित हो चुकी है। इसके अतिरिक्त 10 अप्रकाशित रचनाएं भी है।
- बांकीदास की अमर ख्याति उनके द्वारा रचित निम्नलिखित गीत है -
" आयो अंगरेज मुलक रै ऊपर , आहंस लीधा खैंच उरा। "
इस गीत मे कवि की राष्ट्रिय भावना का परिचय मिलता है। बांकीदास के इतिहास प्रेम ने उसकी ख्यात के कारण उसे अमर बना दिया।
दयालदास री ख्यात ( बीकानेर ) -
-दयालदास सिढ़ायच बीकानेर के महाराजा रतनसिंह (1828 - 1851 ई. ) के दरबारी थे।
- यह मारवाडी ( डिंगल ) भाषा मे लिखी गयी एक विस्तृत ख्यात है।
- इसमें बीकानेर के राठौंड़ौ के प्रारम्भ से लेकर महाराजा सरदार सिंह तक का इतिहास दो भागों में लिखा गया है।
- इस ख्यात में यह भी जानकारी प्राप्त होती है की 1836 में गया के तीर्थ स्थान पर बीकानेर के राजा रतन सिंह ने अपने सामन्तों को यह शपथ दिलवाई थी कि वे भविष्य में कन्याओं का वध नहीं करेंगे।
- आख्यानि , कल्पद्रुम , गामा री पट्टा री विगत दयालदास की अन्य रचनाएं है।
- दयालदास की विशेष बात यह है कि इनकी ख्यात सलंग्न अर्थात एतिहासिक घटनाओं की जानकारी क्रमबध्द तरीके से लिखि गयी है।
जोधपुर राज्य की ख्यात -
- इस ख्यात में राव सीहा से लेकर महाराजा मानसिंह की मृत्यु तक का विश्लेषण है।
- यह ख्यात महाराजा मानसिंह के शासनकाल में लिखी गयी थी।
- इस ख्यात मे राव जोधा से पुर्व का इतिहास प्रामाणिक नही है , किन्तु बाद का इतिहास इस ख्यात के आधार पर प्रामाणित होता है।
मुण्डियार री ख्यात -
- मुण्डियार वर्तमान नागौर जिले से 10 मील दक्षिण में स्थित है।
- मुण्डियार कि जागीर के तौर पर चारणोंं को दि गयी थी।
- राव सीहा के द्वारा मारवाड में राठौड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराजा जसवंत सिंह प्रथम तक का वृत्तांत मिलता है।
- यह ख्यात महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के काल में लिखी गयी है।
- प्रत्येक राजा के जन्म , राज्याभिषेक , मृत्यु तक की तारीखें इस ख्यात में दी गयी है।
- प्रत्येक राजा के कितनी रानीयां थी और उनके कौन- कौनसी संतानें हुई इसका भी उल्लेख इस ख्यात में है।
- इस ख्यात मे यह भी लिखा है कि अकबर के पुत्र सलीम की मां जोधाबाई मोटाराजा उदयसिंह की दत्तक बहिन थी , जिनकी माता मालदेव की दासी थी।
- इस ख्यात की उपलब्ध प्रति को डॉ. रघुवीर सिंह सीतामऊ ने नटनागर संस्थान के लिये खरीद लिया है।
कवि राजा की ख्यात -
- इस ख्यात मे जोधपुर के नरेश महाराजा जसवंत सिंह प्रथम के शासन काल के बारे मे विस्तारपूर्वक बताया गया है।
- इसके अतिरिक्त राव जोधा , रायमल , सूरसिंह के मंत्री भाटी गोबिन्ददास के उपाख्यान भी शामिल है।
अन्य
- किशनगढ़ री ख्यात - किशनगढ़ के राठौड़ौं का इतिहास
- भाटियों री ख्यात - जैसलमेर के भाटियों का इतिहास
- यत्र - तत्र बिखरा हुआ राजस्थानी साहित्य जिनविजय जी मुनि के प्रयास से जोधपुर में संग्रहित करवा दिया था।
- भूतपूर्व राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया ने प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान को जोधपुर मे स्थापित करवा कर के अमुल्य निधि को नष्ट होने से बचा लिया।
- इसी संस्थान से नैणसी री ख्यात , बॉंकीदास री ख्यात , दयालदास री ख्यात प्रकाशित की गयी थी।
- ख्यात साहित्य , उपयोगी ऐतिहासिक स्त्रोत है , लेकिन इसका प्रयोग पूरक और परिपूरक साधन के रुप में ही किया जाना चाहिये।
Total kitni ख्यात है
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