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राजस्थान के महत्वपुर्ण प्राचीन अभिलेख | Rajasthan ke pramukh abhilekh

  

राजस्थान के महत्वपुर्ण प्राचीन अभिलेख


पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख  हैं। इनमें वंशावली,  तिथि, विजय, दान, उपाधि, नियम, उप नियम,सामाजिक नियमावली अथवा आचार संहिता, विशेष घटना आदि का विवरण उत्कीर्ण करवाया जाता रहा है। जिन अभिलेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है , उसे ‌‌'प्रशस्ति' कहते हैं।

  • अभिलेखों के अध्ययन को 'ए‌‌पिग्राफी' कहते हैं। अभिलेखों में शिलालेख, स्तंभ लेख, गुहालेख, मूर्ति लेख, पट्टलेख, आदि आते हैं अर्थात पत्थर, धातु आदि पर लिखे लेख सम्मिलित है। भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक मौर्य के हैं जो प्राकृत मागधी भाषा एवं मुख्यतया ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।

  • शक शासक रूद्र दामन का जूनागढ़ अभिलेख भारत में पहला संस्कृत का अभिलेख हैं।

राजस्थान के अभिलेखों की प्रमुख भाषा संस्कृत एवं राजस्थानी है। इनकी शैली गद्य -पद्य है तथा इनकी लिपि महाजनी एवं हर्षकालीन है,लेकिन नागरी लिपि को विशेष रूप से काम में लाया गया है। राजस्थान के इतिहास से सम्बन्धित प्रमुख अभिलेख निम्नलिखित है

👉Table Of Content

1. विराट नगर अभिलेख (जयपुर ):-

यह अभिलेख अशोक मौर्य द्वारा निर्मित है। यहां अशोक मौर्य के दो   अभिलेख  मिले है। जो इस प्रकार हैं  भाब्रू शीला फलक एवं   बैराठ अभिलेख।  भाब्रू शिला फलक कप्तान बर्ट को विराट नगर की ‘बीजक की पहाड़ी ‘से प्राप्त हुआ था। अब यह कलकत्ता संग्रहालय में होने के कारण कलकत्ता - बैराठ लेख कहलाता है। इसमें अशोक स्पष्ट रूप से बौद्ध धर्म में आस्था दिखाते हुए बुद्ध,धम्म ,संघ ,(बौद्ध त्रिरत्न ) का उल्लेख करते हुए स्वम को बौद्ध सिद्ध करता है। दूसरा अभिलेख विराट नगर से मिला है। 


2.नगरी का लेख (200 -150 ई.पू. ):-

यह नगरी में मिला है और यह उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है। इसकी लिपि घोसुंडी के लेख की लिपि से मिलती जुलती है। इस अभिलेख में यहां सब जीवों की दया निमित्त या तो कोई नियम बनाया गया है या यहां कोई स्थान बनाया गया हो जहां जीवों की की रक्षा की सुविधा हो सके। सम्भवतः यह लेख बौद्धो या जैनों से संबंध हो।

 

3.घोसुण्डी शिलालेख (द्वितीय सदी ई.पू.), चित्तौड़गढ़ :-

इसकी खोज डॉ. डी.आर.भण्डारकर द्वारा की गयी थी। यह अभिलेख उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है। राजस्थान में वैष्णव (भागवत )सम्प्रदाय से सम्बंधित प्राचीनतम अभिलेख है। इसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि ब्राह्मी है। इसमें गजवंश के शासक सर्वतात (पाराशरी का पुत्र )द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने एवं विष्णु मंदिर की चारदीवारी बनाने की जानकारी मिलती है। इसमें भागवत की पूजा के लिए ‘शिला प्राकार’ बनाने का उल्लेख है। इसकी तीन प्रतियां प्राप्त होती है। 


4.बरली का शिलालेख :-

राजस्थान का सबसे प्राचीनतम शिलालेख कहलाता है। अजमेर से 35  किमी दूर बरली के पास मिलोत माता के मंदिर से इसे प्राप्त किया गया था। यह दूसरी शताब्दी ई.पू. का है एवं इसकी लिपि ब्राह्मी है।


5.मानमोरी अभिलेख (चित्तोड़गढ़ ):-

इस अभिलेख का प्रशस्तिकार नागभट्ट का पुत्र पुष्य एवं उत्कीर्णक करुण का पौत्र शिवादित्य था। इसमें चित्रांगद मौर्य का उल्लेख है जिसने चित्तौगढ़ किले का निर्माण करवाया। यह अभिलेख ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस वंश का इसमें तक्षक वंश का व अग्नि वंश से उत्पन्न होने का उल्लेख मिलता है। जब कर्नल जेम्स टॉड इसे इंग्लैण्ड ले कर जा रहा था तो असंतुलन के कारण इसे समुद्र में फेकना पड़ा। 


6.नांदसा यूप -स्तंभ लेख (225 ई.):-

नांदसा अभिलेख भीलवाड़ा में है। यह गोल स्तम्भ है जो लगभग 12 फ़ीट ऊँचा और साढ़े पांच फ़ीट गोलाई में है। इस पर 6 पंक्ति का लेख और दूसरा 11 पंक्तियों  का उसके चारो और उत्कीर्ण है। इस स्तम्भ की स्थापना सोम द्वारा की गयी थी।  इसमें प्रयुक्त शब्द -सप्त सोम संस्था का अभिप्राय सात -स्तम्बो की यज्ञ के निमित्त स्थापना है। 

 

7.बड़वा यूप अभिलेख (238 -39 ई. ):-

यह अभिलेख बड़वा ग्राम कोटा में है। इसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि ब्राह्मी उत्तरी है।  इसमें कृत  सवंत 295 का उल्लेख मिलता है। 

मौखरी  राजाओं का यह सबसे पुराना और पहला अभिलेख है। यह तीन यूप पर खुदा है। यूप एक प्रकार का स्तम्भ है। बड़वा यूप का प्रमुख व्यक्ति बल था, जो अन्य शाखाओं से अधिक पुरानी शाखा है।  उसकी उपाधि महासेनापति होने से अर्थ निकलता है की वह बहुत बलशाली था। दूसरे स्तंभ लेख में ‘अप्तोयाम यज्ञ ’ के बारे में लिखा है जिसे मौखरि धनत्रात ने सम्पादित किया है। 

  1. श्री महासेनापति मौखरी बल पुत्र बलवर्द्धन का यूप जिसने यज्ञ किया। 

  2. श्री महासेनापति मौखरी बल पुत्र सोमदेव  का यूप जिसने यज्ञ किया। 

  3. श्री महासेनापति मौखरी बल पुत्र बलसिंह का यूप जिसने यज्ञ किया।


8.नगरी का शिलालेख (424 ई. ):-

इस लेख को डी.आर. भंडारकर ने नगरी से उत्खनन के समय प्राप्त  किया था। इसे अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित कर दिया है। इसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि नागरी है। ‘जयति भगवान विष्णु’ ‘ कृत’  ‘मालव पूर्वाय’ आदि शब्दों के वयवहृत होने से इनका संबंध विष्णु पूजा के स्थान विशेष से रहा हो। 


9.भ्रमरमाता का लेख (490 ई.):-

छोटी सादड़ी ( जिला चित्तोड़गढ़ ) भ्रमरमाता का  मंदिर है। इसमें गोरवंश तथा औलिकर वंश के शासकों का वर्णन मिलता है। प्रशस्ति का रचियता मित्रसोम  का पुत्र ब्रह्मसोम और लेखक पूर्वा था। 


10.बसंतगढ़ का लेख (625 ई. ):-

सिरोही जिले के बसंतगढ़ के वि.सं. 682 के लेख राजा वर्मलात के समय का है। इस लेख से पाया जाता है की उक्त सवंत् में वर्मलात का स्तंभ राज्जिल, जो वज्रभट (सत्याश्रय ) का पुत्र था और अबुर्द देश का स्वामी था। सामंत प्रथा पर इस लेख से कुछ प्रकाश पड़ता है।

 

11.सांमोली शिलालेख (646 ई.):-

यह शिलालेख मेवाड़ के दक्षिण में भोमट तहसील सांमोली गांव से मिला है। यह लेख मेवाड़ के गुहिल राजा शिलादित्य के समय का वि.सं. 703 का है। इसमें प्रयुक्त की गयी भाषा संस्कृत तथा लिपि कुटिल है। इससे  यह भी संकेत मिलता है की जावर के निकट के अरण्यगिरि में तांबे और जस्ते की खानों का काम भी इसी युग से आरम्भ हुआ हो। 


12.अपराजित का शिलालेख (661ई. ) :-

यह अभिलेख नागदे गांव के निकटवर्ती कुण्डेश्वर मंदिर में मिला है। इस लेख का सारांश इस प्रकार है की - “गुहिल वंश के तेजस्वी राजा अपराजित ने सब दुष्टों का नाश किया तथा अनेक राजा उसके आगे सिर झुकाते थे। 


13.कणसवा अभलेख (738 ई. ):-

इस अभिलेख में मौर्य वंशी राजा धवल का उल्लेख मिलता है। सम्भवतः धवल राजस्थान का अंतिम मौर्य वंशी राजा था। 


14. मण्डौर अभिलेख (837 ई.) जोधपुर :-

यह गुर्जर नरेश ‘बाउक’ की प्रशस्ति है। इसमें गुर्जर -प्रतिहारों की वंशावली , विष्णु एवं शिव पूजा का उल्लेख मिलता है। 


15.घटियाला शिलालेख (861 ई.):-

इस अभिलेख को क्क्कुक प्रतिहार ने बनवाया था । इन लेखो में ‘मघ’ जाती के ब्राह्मणों का वर्णन है। इस जाती के लोग मारवाड़ में शाक द्वीपीय ब्राह्मण के नाम से भी जाने जाते है जो ओसवालों के आश्रित रह  कर जीवन निर्वाह करते थे। जैन मंदिरों में पूजा के कार्य करने से इन्हे सेवक भी कहा जाता है।इन लेखों का लेखक ‘मघ’ तथा उत्त्कीर्णक सुवर्णकार ‘कृष्णेश्वर’ था।  नागभट्ट ने मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया था। 


16.मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति (880 ई.):-

गुर्जर प्रतिहारों के लेखों में सर्वाधिक उल्लेखनीय मिहिर भोज  का ग्वालियर अभिलेख है जो एक प्रशस्ति के रूप में है । इसमे कोई तिथि अंकित नही है ।

यह प्रतिहार वंश के शासकों की राजनीतिक उपलब्धियों तथा उनकी वंशावली को जानने का मुख्य साधन है। 

यह प्रशस्ति ग्वालियर नगर से एक किलोमीटर पश्चिम में स्थित सागर नामक स्थान से प्राप्त हुई है। 

यह प्रशस्ति तिथि विहीन है किन्तु तत्कालीन नरेशो तथा राजनीतिक इतिहास के द्वारा इसकी तिथि 880 ईस्वी के लगभग लगती है। 

यह प्रशस्ति शुद्ध संस्कृत में लिखा गया ह। 

इस लेख की लिपि उत्तरी ब्राह्मी लिपि है। 

इस लेख का लेखक भट्ट धनिक का पुत्र बालादित्य है। 

यह लेख एक प्रस्तर पर उत्कीर्ण है। जो प्रशस्ति के रूप में है। इस लेख में 17 श्लोक है। 

इस लेख का उद्देश्य गुर्जर-प्रतिहार शासक भोज द्वारा विष्णु 

के मन्दिर का निर्माण कराये जाने की जानकारी देना है और साथ ही अपनी प्रशस्ति लिखवाना ताकि स्वयं को चिरस्थायी बना सके।इस लेख की चौथी पंक्ति से प्रतिहार वंश की वंशावली के बारे में जानकारी मिलनी प्रारम्भ होती है लेख में राजाओं के नाम के साथ उनकी उपलब्धियों का भी बखान किया गया है। 


17.प्रतापगढ़ अभिलेख (946 ईस्वी),प्रतापगढ़ :-

इस अभिलेख में गुर्जर- प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल की उपलब्धियों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गयी है। 


18.अचलेश्वर प्रशस्ति: -

यह प्रशस्ति बहुत बडी है। इसमे अग्निकुंड से पुरुष के उत्पन्न होने के बारे में जानकारी मिलती है तथा इस प्रशस्ति में ये भी लिखा है की परमारों का मूल पुरुष धूमराज था।

 

19.लूणवसही(आबू-देलवाड़ा) की प्रशस्ति(1230 ईस्वी):-

यह प्रशस्ति पोरवाड जातीय शाह वस्तुपाल तेजपाल द्वारा बनवाये गये है आबू के देलवाड़ा गाँव के लूणवसही के मंदिर की स्थापना 1287 ईस्वी की है। इसकी भाषा संस्कृत है और इसे  गद्य में लिखा गया है।  इसमें आबू के परमार शासकों तथा वस्तुपाल तेजपाल के वंश का उल्लेख है। इसमें बताया है कि सोमसिंह के समय के मंत्री वस्तुपाल के छोटे भाई तेजपाल ने आबू पर देलवाड़ा गांव में लूणवसही नामक नेमिनाथ का मंदिर अपनी स्त्री अनुपमा देवी के श्रेय के लिये बनवाया। 


20.नेमिनाथ (आबू) के मंदिर की प्रशस्ति (1230 ईस्वी):-

यह प्रशस्ति वि.सं. 1287 की है। इसको तेजपाल के द्वारा बनवाये गये आबू के देलवाड़ा गांव के नेमिनाथ के मंदिर में लगाई गयी थी। इसमें आबू , मारवाड़ , सिंध ,मालवा ,तथा गुजरात के कुछ भागों पर शासन करने वाले परमारों तथा वस्तुपाल और तेजपाल के वंशों का वर्णन दिया है।  इस प्रशस्ति में लिखा है कि यशोधवल ने कुमारपाल के शत्रु मालवा के राजा बल्लाल को मारा था। यशोधवल के दो पुत्र धारावर्ष और प्रह्लादनदेव थे।  धारावर्ष ,आबू के परमारों में बड़ा प्रसिध्द और पराक्रमी शासक था।  धारावर्ष का छोटा भाई प्रह्लादनदेव वीर एवं विद्वान था। धारावर्ष का पुत्र सोमसिंह था।  उसके समय में मंत्री वस्तुपाल के छोटे  भाई तेजपाल ने आबू पर  देलवाड़ा गांव में लूणवसही नामक नेमिनाथ का मंदिर करोड़ों रुपये लगाकर अपने पुत्र लूण सिंह तथा अपनी स्त्री अनुपमा देवी के श्रेय के लिये बनवाया था। इस प्रशस्ति का रचनाकार सोमेश्वर देव था एव्म उसे सूत्रधार चण्डेश्वर ने खोदा था।

 

21.चीरवा अभिलेख (उदयपुर):-

यह अभिलेख 1273 ईसवी का है।  36 पक्तियों एवं देवनागरी लिपि में तथा संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध 51 श्लोकों का शिलालेख मेवाड़ के गुहिल वंशीय राणाओं की समर सिंह के काल तक की है।  उस काल की प्रशासनिक व्यवस्था में तलारक्षों  का कार्य तथा धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं के बारे मे जानकारी देता है। लेख में एकलिंग जी के अधिष्ठाता पाशुपात योगियों के अग्रणी शिवराशि और मंदिर की व्यवस्था का भी उल्लेख मिलता है। भुवन सिंह सूरि के शिष्य रत्नप्रभ सूरी ने चित्तौड़ रहते हुए चिरवा शिलालेख की रचना की और उनके मुख्य शिष्य पार्श्वचंद्र ने , उसको सुन्दर लिपि में लिखा।  पद्मसिंह के पुत्र केलिसिंह ने उसे खोदा और शिल्पी देल्हण ने उसे दीवार में लगाने का कार्य संपादन किया।


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Comments

  1. Thanks for all Rajasthan Historical information for Rajasthan government competition exams

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