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राजस्थान इतिहास के आधुनिक इतिहासकार

             राजस्थान इतिहास के आधुनिक इतिहासकार 

कर्नल जेम्स टॉड, इंग्लैण्ड (1782 - 1835 ई.) 


- कर्नल जेम्स टॉड ब्रिटिश निवासी थे जो 1800 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्य करने लगे।  

- कर्नल जेम्स टॉड  1806 ई. के जून महिने में उदयपूर आया था।  

- कर्नल जेम्स टॉड 1812 - 17 ई. तक लगातार राजस्थान भ्रमण करके ऐतिहासिक साम्रगी का संग्रह किया था।  

- 8 मार्च 1818 को कर्नल जेम्स टॉड  मेवाड़ और हाड़ौती का पॉलिटिकल एजेंट ( दक्षिण - पश्चिमी राजपूताने का रेजीडेन्ट ) नियुक्त होकर उदयपूर पहूचां।  

- 3 नवम्बर 1819 को कर्नल जेम्स टॉड को सिरोही व मारवाड़ राज्यों का भी प्रभार दिया गया।  

- राजपूत राज्यों के इतिहास संबंधि जानकारी प्राप्त करने में इनके गुरु ज्ञानचंद्र का विशेष योगदान रहा है।  

- कर्नल जेम्स टॉड इस एतिहासिक साम्रगी को संग्रहित करके 1822 में अपने साथ लन्दन ले गये।  

- कर्नल जेम्स टॉड  की मृत्यु 17 नवम्बर 1835 ई. को हो गयी थी।  

- 1829 ई. में कर्नल जेम्स टॉड  ने इंग्लैण्ड में रहते हुये  राजस्थान इतिहास की जानकारी को ' एनॉल्स एण्ड एण्टीक्यूटीज ऑफ राजस्थान ' का प्रथम भाग अपने निजी व्यय से छपवाकर प्रकाशित करवाया था 

- 1832 में ' एनॉल्स एण्ड एण्टीक्यूटीज ऑफ राजस्थान ' का भाग द्वितीय तथा अपनी दूसरी पुस्तक ' ट्रेवल्स इन सेण्ट्रल एण्ड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ राजस्थान ' का प्रकाशन उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई।  

- कर्नल जेम्स टॉड ने अपना यात्रा वृतान्त ' ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया ' अपने गुरु जैन यति ज्ञानचंद्र को समर्पित किया था।  

- कर्नल की प्रथम पुस्तक एनॉल्स के प्रथम भाग में राजपुताने की भौगोलिक स्थिति , तत्कालीन सामन्ती व्यवस्थता , शासकों की वंशावली व मेवाड़ के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान की गयी है।  

- एनॉल्स के द्वितीय भाग से हमें राजपूताने के विभिन्न राज्यों का क्रमबध्द व विस्तारपुर्वक इतिहास दिया गया है। 

 

- इनके तृतीय ग्रंथ  ' ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया ' में व्यक्तिगत अनुभव , अंधविश्वासों , राजपूती परम्पराओं , मंदिर - पुजारी , आदिवासी एवं गुजरात राज्य का इतिहास दिया गया है।  

- टॉड द्वारा लिखित ग्रंथों से युरोप का ध्यान राजस्थान की तरफ गया।  

- टॉड ने लिखा कि राजपूताना में कोई छोटा राज्य भी शायद ही हो जिसमें थर्मोपाइले जैसा युध्द का मैदान न हो और लियानिडास जैसा वीर योध्दा पैदा न हुआ हो।  

- कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूताने का ऐतिहासिक साहित्य , गुम होते शिलालेखों , अनजाने पुरालेखों आदि को नष्ट होने से बचाया अपितु हमारे राजस्थान के इतिहास  को अमर व गौरवमय बना दिया।  

- कर्नल जेम्स टॉड का इतिहास का वर्णन क्रमबध्द चरण से लिखा हुआ है व इसका उपयोग विश्लेषणात्मकता के लिये अधिक होता है।  

- कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान का प्रथम इतिहासकार था जिसने पहली बार राजस्थान का इतिहास वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखा था।  

- इसलिये  इन्हें ही सही मायने में ' राजस्थान के इतिहास का पिता या पितामह ' कहा जाता है।  

- कर्नल जेम्स टॉड लिखते है कि उन्होने जैसलमेर के जैन - भण्डारों में  पांच से आठवीं शताब्दी पहले की जो पांडुलिपियां थी उन्हें उन्होने रॉयल एशियाटिक सोसायटी को जाकर दे दी थी क्योंकी उससे प्राचीन भारत के इतिहास पर नया प्रकाश पड सकता था।  

- डॉ.  बूहलर ने इसी साहित्य को सबसे पहले संसार के सामने प्रस्तुत किया था।  

- पं. बलदेव प्रसाद मिश्र ने 1907 - 09 की अवधि के बीच में इस ग्रंथ का सर्वप्रथम हिन्दी में अनुवाद कर संसार के सम्मुख प्रस्तुत किया था।  

- किन्तु दुर्भाग्यवश दुसरे भाग के प्रकाशन से पूर्व ही उनका स्वर्गवास हो गया। 

 

-  पं. बलदेव प्रसाद मिश्र के भाई ज्वालाप्रसाद मिश्र व इतिहासकार मुंशी देवी प्रसाद ने दुसरे भाग की पाण्डुलिपि को संशोधित करने का कार्य किया था।  

- श्री केशवकुमार ठाकुर ने 1961 में इस ग्रंथ के दोनो भागों को एक ही ग्रंथ में अनुवाद करके प्रकाशित करवा दिया था।  


डॉ. एल. पी. टैसीटोरी, इटली 

- सुप्रसिध्द भाषाशास्त्री डॉ. ग्रियर्सन ने टैसीटोरी को एशियाटिक सोसाइटी ऑफ कलकत्ता के अधीन राजपूताना के ऐतिहासिक सर्वेक्षण का कार्य सौपां।

- टैसीटोरी सर्वप्रथम जोधपुर मे शौध कार्य करने के लिये आये थे। 

- राजस्थानी ग्रंथो को संकलन करने में रामकरण आसोपा मे टैसीटोरी की बहुत सहायता की थी।  

- इसके बाद  टैसीटोरी बीकानेर पहुंचे थे।  

- टैसीटोरी की कार्य स्थली बीकानेर रही व इनकी मृत्यु (1919 ई.) भी बीकानेर मे ही हुई थी  जहॉं उनकी कब्र बनी हुई है। 

- बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने टैसीटोरी को ' राजस्थान के चारण साहित्य ' के सर्वेक्षण एवं संग्रह का कार्य दिया था । 

- बीकानेर के जैन आचार्य विजयधर्म सूरि से टैसीटोरी की मुलाकात हुई थी।  

- इसी समय टैसीटोरी ने अनेक राजस्थानी ग्रंथो की विवरणात्मक सूची तैयार की और उनका इटली भाषा में अनुवाद किया था।  

- इन्होनें दो ग्रंथ लिखे प्रथम ग्रंथ ' राजस्थानी चारण साहित्य एवं ऐतिहासिक सर्वे ' तथा द्वितीय ग्रंथ ' पश्चिमी राजस्थानी का व्याकरण '।  

इनकी प्रसिध्द पुस्तक ' ए डिस्क्रीप्टिव केटलॉग ऑफ द बार्डिक एण्ड हिस्टोरिकल क्रोनिल्स ' है।  

- टैसीटोरी ने भारत के धार्मिक ग्रंथ रामयण , रामचरित मानस एवं महाभारत का इटली भाषा मे अनुवाद किया था।  

- टैसीटोरी ने बीकानेर के प्रसिध्द दर्शनीय म्यूजियम की स्थापना भी की थी।  

- टैसीटोरी ने ही सर्वप्रथम सरस्वती और दृषद्वती की घाटी की पूर्व हड़प्पा कालीबंगा सभ्यता की खोज की थी ।  

- टैसीटोरी ने डिंगल साहित्य ( चारण साहित्य ) की अमूल्य सेवा की थी।  


जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन, इंग्लैण्ड 


- जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने इन्होने ' Linguistic survey of India  ' नामक ग्रंथ लिखा जिसमें भारतीय भाषाओं का जिसमें खासकर राजस्थानी भाषा का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है । 

- इन्होने ' Modern Vernacular Literature of Northern India ' नामक ग्रंथ भी लिखा है।

- इनका एशियाटिक सोसाइटि ऑफ कलकत्ता से संबंध था।  

- इन्होने राजस्थानी भाषा का स्वतंत्र रुप से वैज्ञानिक विश्लेषण अपने ग्रंथ ' Linguistic Survey of India' मे किया है।  

- इन्होने अपने ' आधुनिक भारतीय भाषा विषयक विश्व कोश ' के दो खण्डों मे राजस्थानी बोलियों का प्रथम वर्णात्मक वर्णन सन् 1907 और 1908 मे प्रकाशित किया था।  


अबुल फजल, नागौर 

- अबुल फजल के पिताजी शेख मुबारक का जन्म नागौर में हुआ जबकि अबुल फजल व उसके बड़े भाई फैजी का जन्म आगरा में हुआ था।  

- अबुल फजल मूलतः नागौर कस्बे के रहने वाले थे।  

- अकबर के नवरत्नों मे अबुल फजल व उनके भाई फैजी भी थे।  

- अबुल फजल ने अकबर के आदेश से 1589 ई. में मुगल साम्राज्य का इतिहास लिखना प्रारम्भ किया था।  

- अबुल फजल ने अकबर के समय  के इतिहास को ' अकबरनामा ' नाम दिया व ये तीन भागों मे विभाजित था। इनमें एक भाग फारसी भाषा मे लिखा गया है जो कि ' आईने अकबरी ' है।  

- इनके भाई फैजी ने भी अकबर कालीन इतिहास ' अकबरनामा ' मे लिखा है।  


कवि माघ


- कवि माघ भीनमाल निवासी थे।  

- इन्होनें शिशुपाल वध की रचना की थी। 

- इन्होने अपनी कृति मे कालीदास की उपमा , भारवी का विचार गांभीर्य  एवं दण्डी की लेखन शैली की नियम निष्ठा का अति सुन्दर विवरण किया है।


गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, सिरोही ( 1863 - 1947 ई. )


- इनका जन्म सिरोही रियासत के रोहिड़ा ग्राम में हुआ था।  

- ओझा जी राजस्थान इतिहास के महान इतिहासकार , प्रकांड विद्वान व विश्वप्रसिध्द ' पुरातत्ववेत्ता ' थे। 

- प्रारम्भ में ये उदयपूर राज्य की रेजीडेन्ट की सेवा मे थे किन्तु बाद में ये अपनी सेवा अजमेर ने देने लगे।  

- ओझा मे 1894ई. में  उदयपुर मे रहते हुए हिन्दि मे पहली बार ' भारतीय प्राचीन लिपि शास्त्र ( माला ) ' का लेखन का कार्य करके अपना नाम ' गिनीज वर्ल्ड बुक ' मे दर्ज करवाया।

- सन् 1911 मे सर्वप्रथम ओझाजी ने ही ' सिरोही राज्य का इतिहास ' लिखा था।

- इन्होने लगभग हर राजपुताने राज्य का इतिहास लि्खा था।

- इन्होनें ' राजस्थान के इतिहास ' के अलावा ' नैणसी री ख्यात ' का सम्पादन का कार्य कि्या तथा टॉड के ' एनॉल्स ' की गलतियों का शुध्दिकरण करके हिन्दी में अनुवाद का कार्य किया था।

- इन्होने ' नागरी प्रचारणी पत्रिका ' के सम्पादन का कार्य 13 वर्षों तक किया था।

- सन् 1914 ई. मे इन्हें ' रायबहादुर ' सम्मान की उपाधि से नवाजा गया था।

- 1927 के अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे।

- सन् 1933 के हिन्दी साहित्य सम्मेलन मे इनको ' भारतीय अनुशीलन ' की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। 

- इनको ब्रिटिश सरकार ने भी ' महामहोपाध्याय ' की उपाधि से अलंकृत किया था।  


सूर्यमल्ल मिश्रण, बूंदी ( 1815 - 1865 ई.)


- ये बूंदी के महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे।  
- इनके पिता का नाम चण्डीदान तथा इनकी माता का नाम भवाई बाई था। 

- इन्होने एक प्रसिध्द ग्रंथ ' वंश भास्कर ' लिखा जिसको उनके दत्तक पुत्र मुरारीदान ने पुरा किया था।  
- वंश भास्कर में समस्त राजपूताना सहित बूंदी का इतिहास दिया गया है।  
- वीर सतसई , बलवन्त विलास , सतीरासो , रामरंजाट , छंदोमयूख , धातु रुपावली आदि सूर्यमल्ल मिश्रण की प्रसिध्द रचनाएं है।

- ' वंश भास्कर ' में केवल सत्य बातों का ही वर्णन किया गया है।

-   यह ग्रंथ सवा लाख पदों का महाकाव्य ड़िंगल भाषा मे लिखा गया है लेकिन साथ में ही 5 - 6 भाषाओं के उपयोग करने से इस महाकाव्य की भाषा जटिल हो गयी है।

- 1857 की क्रांति के समय सूर्यमल्ल मिश्रण ने वीर सतसई ग्रंथ की रचना करके देशवासियो को प्रेरणा देने का कार्य किया था। 

- अंग्रेजी दासता के विरुध बिगुल बजाने का कार्य इन्होनें वीर सतसई की रचना करके अपना कार्य भलीभांती किया था।

- डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार सूर्यमल्ल मिश्रण अपने काव्य और कविता को '  Lay of the last minstral ' बना गये और स्वंय बने ' Last of the Gaints '।  


कवि राजा श्यामलदास, भीलवाड़ा (1836 - 1893 ई. )


- कवि राजा श्यामलदास का जन्म  भीलवाड़ा के गांव छालीवाड़ा धोकलिया में 5 जुलाई 1836 को हुआ था।  
- इन्होने मात्र 9 वर्ष की आयु से ही ' सारस्वत ' व ' अमरकोष ' का अध्ययन कर लिया था।  
- प्रारम्भ से ही इनकी रुचि इतिहास में थी।

- ये महाराणा शंभुसिंह के दरबारी कवि थे।

- महाराणा शंभुसिंह ने इन्हे सन् 1871 में मेवाड़ का इतिहास लिखने का कार्य दिया था।  

- कवि राजा श्यामलदास को इतिहास लेखन के कार्य करने के लिये महाराणा सज्ज्नसिंह ने 1 लाख रुपये का अनुदान दिया था।

- इन्हें साथ ही मेवाड़ राज्य के पुस्तकालय का अध्यक्ष भी बनाया था।  

- 1881 में जब भीलों का विद्रोह हुआ था तब इन्हें ही भीलो से समझोता करने के लिये भेजा था। 

- श्यामलदास व उनके सहयोगी गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इतिहासिक साम्रगी का संकंलन करके ' वीर विनोद ' लिखना प्रारन्भ किया।  

- 1871 ई. में वीर विनोद के लेखन का कार्य पूर्ण हुआ था।  

- महारणा सज्ज्नसिंह ने 1879 ई. में श्यामलदास को ' कविराजा ' की उपाधि प्रदान कि थी।  

- श्यामलदास को ' रॉयल एशियाटिक सोसायटी ' का भी सदस्य बनाया गया था।  
- श्यामलदास को साथ में ही ' हिस्टोरिकल सोसायटी ऑफ लंदन का फेलो ' चुना गया।  

- ब्रिटिश हुकुमत ने इन्हें ' महामहोपाध्याय ' एवं ' केसर - हिन्द ' की उपाधि से नवाजा था।  

- इनका प्रसिध्द ग्रंथ वीर विनोद पांच बड़ी जिल्दों में उपलब्ध है।


रामकरण आसोपा, जोधपुर


- इनका जन्म 7 अगस्त 1857 को मारवाड़ के बड़लू ग्राम में हुआ था।  

- इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा दादुपंथी साधु से प्राप्त की थी।

- रामकरण आसोपा कलकत्ता विश्वविद्यालय में सन् 1920 - 21 में राजस्थानी भाषा व डिंगल के प्रवकत्ता नियुक्त हुए।

- इनका निधन 9 अक्टुबर 1943 को हो गया था।

- ओसापा ने जोधपुर के विभिन्न ठिकानों का इतिहास लिखकर मारवाड़ के क्षेत्रीय इतिहास के लेखन का आगाज किया था

- रामकरण आसोपा नें  ' मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास ' एवं ' मारवाड़ का मूल इतिहास ' जैसे एतिहासिक ग्रंथ लिखे थे।

- इन्होने ' गीता ' पर मारवाड़ी भाषा में टीका लिखी एवं ' डिगंल शब्दकोश ' का निर्माण किया।

- इन्होनें डॉ. एल. पी. टैसीटोरी को उनके डिंगल भाषा और साहित्य के शोध में पूरा - पूरा सहयोग दिया था। 



डॉ. दशरथ शर्मा, चूरु


- इनका जन्म चूरु में 1903 में हुआ था।  

- इन्होने अपनी शिक्षा दिल्ली व आगरा विश्वविद्यालय से पूरी की थी।  

- डूंगर कॉलेज बीकानेर में इन्हें सन् 1925 में इतिहास का प्राध्यापक नियुक्त किया गया।  

- सन् 1943 ई. में इनके शोध निबंध ' अर्ली चौहान डायनेस्टीज ' पर आगरा विश्वविद्यालय ने इनको डी. लिट्ट की उपाधि प्रदान कि थी।

- बीकानेर रियासत के प्रधानमंत्री के. एम. पन्नीकर के सहयोग से 1945 में दशरथ शर्मा ने ' सार्दुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्युट ' बीकानेर की स्थापना की तथा इसके निर्देशक भी रहे।

- दशरथ शर्मा नें सन् 1962 ई. में ' राजस्थान थ्रू दी एजेज ' नामक ग्रंथ लिखा।

- दशरथ शर्मा ने 1969 ई. में प्रो. डी. सी. सरकार के सभापतित्व में सात भाषण राजपूत संस्कृति पर जो दिये वो ' लेक्चरर्स ऑन राजपूत हिस्ट्री एण्ड कल्चर ' के नाम से प्रकाशित हुये।

- इनको ' इण्डियन हीस्ट्री कांग्रेस ' का अध्यक्ष भी बनाया गया।

- इनकी नियुक्ति ' राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान ' के निदेशक पद पर भी हुई थी । 

- इनका निधन 3 जुलाई 1976 को हो गया था।  

- इनकी अन्य प्रमुख रचना ' सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय और उनका युग ' थी।  


पं. विश्वेश्वरनाथ रेउ,मारवाड़


- इनका जन्म 2 जुलाई 1890 को कश्मीरी ब्राह्मण  परिवार में हुआ था।  

- इनकी प्रेरणा के स्त्रोत कर्नल जेम्स टॉड थे।  

- इनको इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओक्षा का सानिध्य प्राप्त हुआ था।  

- इन्होनें ओक्षा से ही ड़िगंल भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था।  

- जोधपुर के महाराजा सुमेर सिंह नें इन्हें 1911 ई. में राजकीय सेवा में नियुक्त किया था।  

- इनका निधन 1947 में हो गया था।  

- इनके प्रमुख ग्रंथ ' भारत के प्राचीन राजवंश ', ' कॉइन्स ऑफ मारवाड़ ' , ' मारवाड़ राज्य का इतिहास ' , ' हिस्ट्री ऑफ द राष्ट्र्कूट्स ' , ' ऋग्वेद का सामाजिक और एतिहासिक सार आदि ग्रंथो के लेखन के कार्य किये।  


पं. झाबरमल शर्मा,जसरापुर

- इनका जन्म जसरापुर में सन् 1888 ई. में हुआ था।  

- पं. झाबरमल शर्मा को पत्रकारिता के भीष्मपितामह के नाम से जाना जाता था।  

- कलकत्ता के शिक्षा निकेतन से इन्होने बंगला , संस्कृत , और अंग्रेजी में प्रवीणता प्राप्त की थी।  

- पं. झाबरमल शर्मा ने ' ज्ञानोदय ', ' मारवाड़ी बंधु ' , ' भारत ' , ' हिन्दू संसार ' , आदि अनेक पत्रों का सम्पादन किया था 


- इन्होने ' सीकर का इतिहास ' , ' खेतडी का इतिहास ' ,' खेतडी नरेश और विवेकानन्द ' , ,' हिन्दी गीता रहस्यसार ' , 'भारतीय गौ - धन  ' , ' शेखावाटी का इतिहास ' आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथो की रचना की थी।  

    

हरविलास शारदा,अजमेर


- इनका जन्म 8 जून 1867 को अजमेर में हुआ था।  

- इनका ग्रंथ  ' हिन्दू सुपीरियारिटी ' था जिसका प्रकाशन सन् 1906 ई. में हुआ था।  

- इन्होनें अंग्रेजो के शासनकाल में बाल - विवाह निषेध कानून को पारित करवाने में बड़ी भुमि्का थी। 


- इनके इस ग्रंथ में यह सिध्द किया गया है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति विश्व के अन्य संस्कृतियों से आगे रही है।  

- इनके प्रमुख ग्रंथ अजमेर हिस्टॉरिकल एण्ड डिस्क्रिप्टिव , महाराणा सांगा , हम्मीर ऑफ रणथम्भौर , स्पीचेज एण्ड राइटिंग ऑफ़ हरविलास शारदा , महाराणा कुम्भा , वर्क्स ऑफ महर्षि दयानन्द सरस्वती एण्ड परोपकारिणी सभा , लाइफ ऑफ विरजानंद सरस्वती आदि एतिहासिक ग्रंथों कि रचना की थी।  


- 20 जून 1944 को अजमेर में उनका निधन हुआ।  



मुंशी देवीप्रसाद,जयपुर 


- इनका जन्म 18 फरवरी 1848 ई. को जयपुर में हुआ था।

- इन्होनें अरबी ,फारसी व उर्दू में शिक्षा प्राप्त की थी।

- देवीप्रसाद नें सन् 1879 में जोधपुर में महकमा अपील के नायब नियुक्त किये गये थे।

- सबसे पहले इन्होने मारवाड़ राज्य के लिये कानुन बनाये तथा कानून विषय पर 13 पुस्तके लिखी थी।

- ये लोगों में ' कानून की माता ' व ' कानूनी ' के नाम से जाने जाते थे। 

 - सन् 1923 में जोधपुर में इनकी मृत्यु हो गयी थी।

- इनके प्रसिध्द ग्रंथ ' मारवाड़ का भूगोल ' , मारवाड़ के ' राव मालदेव का जीवन चरित्र ' , ' राजा भारमल ' , ' प्रतिहार वंश प्रकाश ' आदि ग्रंथ लिखे थे।

- मुंशी देवी प्रसाद ने बाबरनामा ,हुमायूंनामा ,अकबरनामा , शेरशाहनामा , शाहजहॉंनामा आदि ग्रंथ हिन्दी व उर्दू भाषा में साथ - साथ ही छपवाये तथा प्रत्येक पृष्ठ के बायें आधे हिस्से पर हिन्दी तो आधे दाहिने हिस्से पर उसी का उर्दू अनुवाद लिखा है।

-  मुंशी देवी प्रसाद ने ही नैणसी को ' राजपुताने का अबुल फजल ' नाम दिया तथा बीकानेर के शासक रायसिंह को ' राजपूताने का कर्ण ' की उपमा दि थी।  

Comments

  1. बहुत अच्छी सामग्री है जी

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