22.बिजौलिया शिलालेख (भीलवाडा 1170ई.):- इस प्रशस्ति का प्रशस्तिकार गुणभद्र था। इस अभिलेख में सांभर (शाकम्भरी) एवं अजमेर के चौहानों का वर्णन है। इसके अनुसार चौहानो के आदि पुरुष वासुदेव चहमन ने 551 ई. में शाकम्भरी में चहमान (चौहान) राज्य की स्थापना की तथा सांभर झील का निर्माण करवाया तथा उसने अहिच्छत्रपुर (नागौर) को अपनी राजधानी बनाया था। इसमें सांभर तथा अजमेर के चौहानों को वत्सगोत्रीय ब्राह्मण बताया गया है तथा उनकी वंशावली दी गयी है। इस अभिलेख 'उत्तम शिखर पुराण ' की स्थापना ' जैन श्रावक लोलाक ' द्वारा पाश्र्वनाथ मंदिर निर्माण की स्मृति में करवायी गयी थी ,ऐसा इसमे उल्लेखित है। उस समय दिया जाने वाला भुमि दान को 'डोहली ' कहा जाता था और भुमि को क्षेत्रों में बांटा जाता था। इसी तरह ग्राम समुह की बडी इकाई के लिये 'प्रतिगण ' का प्रयोग किया जाता था। गांवों तथा प्रतिगणों के अधिकारियों को ' महत्तम ' तथा ' पारिग्रही ' आदि नामों से जाना जाता था। इस शिलालेख से यह भी जानकारी मिलती है कि विग्रहराज चर्तुथ ने 'दिल्ली ' को अपने अधीन किया था।
23.चित्तोड के जैन कीर्तिस्तम्भ के तीन लेख (13 वी सदी): - इन तीनो लेखों का संबंध चित्तोड के जैन कीर्ति-स्तम्भ से है ,क्योकि तीनों में स्तम्भ के स्थापनाकर्ता साह जीजा तथा उनके वंश का विवरण उपलब्ध होता है। इसके प्रारम्भ मे दीनाक तथा उनकी पत्नि वाञ्छी के पुत्र नाय द्वारा एक मंदिर के निर्माण का वर्णन है। विशालकीर्ति के शिष्य शुभकीर्ति के शिष्य धर्मचन्द्र थे। महाराणा हम्मीर ने इनका खुब सम्मान किया था। इनके द्व्रारा मानस्तम्भ की स्थापना की गयी थी। दुसरे लेख का मुख्य भाग स्याव्दाद के संबंध मे है। इस लेख के अंतिम पंक्ति मे बघेरवाल जाती के सानाय के पुत्र जीजाक द्वारा स्तम्भ निर्माण का उल्लेख है।
24.रसिया की छतरी का लेख (1274 ई.) :- यह लेख वि. स. 1331 का है जिसकी रचना प्रियपटु के पुत्र नागर जाति के ब्राह्मण वेद शर्मा ने की थी , जो चित्तोड़ का निवासी था। इसको सुत्रधार सज्जन ने उत्कीर्ण किया था। इस लेख के प्रारम्भ मे देवताओं की वंदना तथा गुहिलवंश की प्रशंसा से होती है। 10 वें श्लोक में बापा का वर्णन आता है जिसमें उसका हारित द्वारा सुवर्ण कटक तथा राज्य प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है तथा बापा द्वारा यज्ञस्तम्भ स्थापित करना महत्वपुर्ण है। प्रशस्तिकार ने गुहिल को बापा का पुत्र बताया है।
25.सच्चियामाता अभिलेख , ओसियां :- सच्चिया माता मंदिर मे उत्कीर्ण इस लेख से मारवाड़ की राजनैतिक स्थिति पर प्रकाश पडता है। कल्हण एव कीर्तिपाल का वर्णन दिया गया है। इस लेख में कल्हण को महाराजा तथा कीर्तिपाल को माडव्यपुर का अधिपति तथा धारावर्ष को विजयी बताया गया है।
26.समिधेश्वर मंदिर का शिलालेख :- यह लेख 1429 ईसवी का है। इस लेख की रचना एकनाथ ने की थी। इस लेख से मेवाड़ के शिल्पियों की वंश -परमपरा के विषय के बारे मे जानकारी मिलती है।
27.रणकपुर प्रशस्ति का लेख :- यह लेख 1439 ई. का है जो की रणकपुर के जैन चौमुख मंदिर मे लगा हुआ है। इस लेख से प्रतीत होता है कि रणकपुर का निर्माता दीपा था। इस लेख मे बापा से लेकर कुम्भा तक के मेवाड़ नरेशों का उल्लेख मिलता है। इस अभिलेख मे महाराणा कुम्भा क़ी प्रारम्भिक विजयों- बूंदी , गागरोण , सारंगपुर , नागौर आदि का भी वर्णन है।
28.रणकपुर प्रशस्ति (1439 ई.) पाली :- इसका प्रशस्तिकार भी देपाक (दीपा) था। इसमें मेवाड़ के राजवंश एवं धरणक सेठ के वंश का वर्णन मिलता है। इसमें बापा एवं कालभोज को अलग -अलग व्यक्ति बताया गया है। इसमें महाराणा कुम्भा की विजयों एवं उपाधियों का विशद् वर्णन है। इसमें गुहिलों को बापा रावल का पुत्र बताया गया है।
29.माचेडी की बावली का दूसरा शिलालेख (1458 ई.) :- माचेडी की बावली के दूसरा शिलालेख से प्रमाणित होता है कि उस भाग में बडगूजर वंशी रजपाल देव का राज्य था। यह रजपाल देव रामसिंह का पुत्र था और रामसिंह गोगदेव का पुत्र अथवा पौत्र का अनुमान लगाया जाता है।
30.कुंभलगढ प्रशस्ति (1460 ई.) राजसमन्द :- इसका प्रशस्तिकार कवि महेश था। इसमे गुहिल वंश का वर्णन एवं उनकी उपलब्धियों के बारे मे बताया गया है । इस लेख में बापा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है। यह मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को विशुध्द रुप से जानने का महत्वपुर्ण साधन है।
31.कुंभलगढ का शिलालेख (1460 ई.) :- यह शिलालेख पांच शिलाओं पर उत्कीर्ण था जिसमें से पहली ,तीसरी और चौथी शिलाएं उपलब्ध है। इनमें प्रयुक्त भाषा संस्कृत तथा लिपि नागरी है। पहली शिला में 68 श्लोक हैं। एकलिंगजी के मंदिर तथा कुटिला नदि का विवरण विस्तारपुर्वक दिया गया है। दुसरी शिला मे चित्रांग ताल , चित्तोड़ दुर्ग तथा चित्तोड़ का वैष्णव तीर्थरुप होने का वर्णन मिलता है। तीसरी शिला में वंश के बारे मे बताया गया है। इसमे बताया गया है की बापा ने हारित की अनुकंपा से मेवाड़ राज्य प्राप्त किया। इस प्रशस्ति से उस समय के मेवाड़ के चार विभागौं का पता चलता है जो चित्तोड़ , आघाट , मेवाड़ और वागड़ थे। चतुर्थ शिला में हमीर के वर्णन में उसके चेलावाट जीतने का वर्णन है और उसे " विषमघाटी पंचानन " कहा गया है। इस प्रशस्ति में विशेष रुप से कुम्भा का वर्णन तथा उसकी विजयों का सविस्तार उल्लेख है। कुंभलगढ का निर्माण तथा वहां अनेक मंदिर , बाग और बावड़ियां भी कुम्भा द्वारा बनवाये जाने का उसमें उल्लेख है। डॉ.ओझा के विचार से चित्तोड़ प्रशस्ति का रचयिता महेश ही होना चाहिये।
32.कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (1440-1448 ई. ) चित्तौड़गढ़ ,:- इसका प्रशस्तिकार महेश भट्ट था। यह राणा कुम्भा की प्रशस्ति है। इसमें बापा से लेकर राणा कुम्भा तक गुहिलों की वंशावली एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। इसमें राणा कुंभा की उपलब्धियों एवं उसके द्वारा रचित ग्रंथो का पता चलता है। इस प्रशस्ति में चण्डीशतक ,गीतगोविंद की टीका ,संगीतराज आदि प्रमुख ग्रंथो की जानकारी मिलती है। इस प्रशस्ति मे कुंभा को महाराजाधिराज , अभिनव भट्टाचार्य , हिन्दु सुरताण ,राणा रासो , छापगुरु , दानगुरु ,राजगुरु और शैलगुरु आदि उपाधियों से पुकारा गया है। इसमें मालवा एवं गुजरात की सयुंक्त सैना को कुम्भा द्वारा परास्त करना तथा विजय के उपलक्ष मे विजय स्तम्भ का निर्माण करने का भी वर्णन किया गया है।
33.रायसिंह प्रशस्ति (1594 ई.) बीकानेर :- इस प्रशस्ति का प्रशस्तिकार क्षेमरत्न का शिष्य जैन मुनि जैता (जड़ता) था। इसमें राव बीका से लेकर राव रायसिंह तक के बीकानेर शासको की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। इसमें राव रायसिंह की विजयों एवं साहित्य प्रेम का भी वर्णन है। इसके अनुसार बीकानेर दुर्ग का निर्माण 30 जनवरी 1589 ई. से लेकर 1594 तक राव रायसिंह ने अपने मंत्री कर्मचन्द द्वारा करवाया था। बीकानेर दुर्ग लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण ' लालगढ़ ' भी कहा जाता है। इस दुर्ग का दुसरा नाम 'जुनागढ़' भी है।
34.आमेर का लेख (1612 ई. ) :- इसमे कछवाह वंश को 'रधुवंशतिलक ' कहकर सम्बोधित किया गया है तथा इसमे पृथ्वीराज , उसके पुत्र भारमल , उसके पुत्र भगवंत दास और उसके पुत्र महाराजाधिराज मानसिंह के नाम क्रम से दिये है। इस लेख से स्पष्ट है कि मानसिंह भगवंत दास का पुत्र था।
35.बरबथ का लेख (1613-1614 ई. ) :- इस लेख मे अकबर की पत्नि मरियम -उज-जमानी की इच्छा से बनाया के निकट बरबथ में एक बाग व बावड़ी का निर्माण करवाया गया , का उल्लेख मिलता है जो मुगल -राजपूत वैवाहिक संबंधो का बोध कराता है।
36.बेड़वास गांव की प्रशस्ति (1668 ई.) :- बेड़वास गांव मे स्थित प्रशस्ति महाराणा राज सिंह प्रथम के समय की है। इसकी भाषा मेवाड़ी और लिपि नागरी है। इसके प्रारम्भ मे भागचन्द तथा फतेहचन्द भटनागर कायस्थ के पुर्वजों की नामावली दी गयी है। महाराणा जगतसिंह ने भागचन्द भटनागर को अपना प्रधानमंत्री बनाया और उसे ऊंटाला आदि 10 गांव , 1 गजराज हाथी ,51 घोड़े सिरोपाव आदि देकर सम्मानित किया। उस समय देश मे नगर ,गांव आदि की सीमाओं पर चुंगी लगती थी जिसे ' देशदाण ' कहते थे और लूट के समय उसी समय जो दण्ड़ वसूल किया जाता था उसे ' उभेदण्ड़ ' कहते थे। प्रशस्तिकार का सुत्रधार हम्मीर जी तथा प्रति को तैयार करने वाला भवानीशंकर था |
37.राजसिंह प्रशस्ति (1676 ई.) राजसमन्द :- इस प्रशस्ति का प्रशस्तिकार रणछोड़भट्ट तैलंग (ब्राह्मण) था। इसे 1676 ई. में महाराणा राजसिंह सिसोदिया के समय स्थापित किया गया था। यह राजसमन्द झील की ' नौ चौकी ' की पाल पर 25 श्याम शिलाओं पर उत्कीर्ण विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति ( अभिलेख) है। छ्ठी शिला को पढने से पता चलता है कि इस महाकाव्य को पत्थर पर खुदवाने के आदेश राजसिंह के उत्तराधिकारी जयसिंह ने दिया था। इसमे बापा रावल से लेकर राणा जगतसिंह द्वितीय तक गुहिलों की वंशावली व उपलब्धियों का विवरण दिया गया है। इसमें महाराणा अमरसिंह द्वारा की गई मुगल- मेवाड़ संधि का वर्णन है। इसमें बताया गया है कि राजसमंद झील (राजसमुद्र ) का निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत राजसिंह द्वारा करवाया गया था , जिसे 14 वर्षो मे पुरा किया था। प्रशस्ति के उत्कीर्णक गजधर मुकुन्द , अर्जुन, सुखदेव ,केशव , सुन्दर , लालो , लखो आदि थे।औरंगजेब के साथ युद्ध और संधि तथा अन्य राज्यों से राजसिंह के संबंध आदि का उल्लेख भी मिलता है।
38.जग्गनाथराय प्रशस्ति (1652 ई. ) उदयपुर :- इस प्रशस्ति का प्रशस्तिकार कृष्ण भट्ट था। इस लेख की लिपि देवनागरी एवं भाषा संस्कृत है। इसमें बापा रावल से लेकर जगतसिंह सिसोदिया तके गुहिलों का वर्णन है। यह प्रशस्ति उदयपुर के जग्गनाथराय के मदिंर के सभामण्डल मे जाने वाले भागा के दोनो तरफ श्याम पत्थर उत्कीर्ण है। इस प्रशस्ति मे प्रताप के समय लड़े गये हल्दीघाटी के युध्द का वर्णन भी है। महाराणा जगतसिंह ने लाखों रुपये की लागत का राजमहलों के निकट जग्गनाथराय का , जिसे अब जगदीश कहते है ;भव्य पंचायतन मंदिर बनवाया। यह मंदिर गूगावत पंचोली कमल के पुत्र अर्जुन की निगरानी और भंगोर गोत्र के सूत्रधार भाणा और उसके पुत्र मुकुन्द की अध्यकक्षता मे बना था प्रशस्ति के अनुसार महाराणा ने पिछोला के तालाब में मोहन मंदिर और रुपसागर तालाब का निर्माण करवाया।
39.शृंगी ऋषि का शिलालेख (1428 ई.) :- यह एकलिंगजी के निकट शृंगी ऋषिनामक स्थान से खण्डित रुप मे प्राप्त हुआ था। यह लेख मोकल के समय का है जिसने अपने धार्मिक गुरु के आदेश से अपनी पत्नि गौराम्बिका की मुक्ति के लिये शृंगी ऋषि के पवित्र स्थान पर एक कुन्ड को बनवाया था। इस लेख की रचना कविराज वाणी विलास योगेश्वर ने की थी। इस लेख से पता चलता है कि हमीर ने भीलों से सफलतापूर्वक युध्द किया था और अपने शत्रु जैत्र को पराजित किया। लाखा के पुत्र मोकल के बारे मे भी इस लेख से पता चलता है कि उसने फिरोज खां (नागोर) तथा अहमद (गुजरात) से दो युध्द लड़े और उन्हें पराजित किया।
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